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आबू पर्वत जैसी प्राचीन रमणीय तपस्थली की पर्वतमालाओं के मध्य सुरम्य घाटी में 18 बीघा का विशाल वृक्षों से हरा भरा परिसर । सात्विक भोजन। तपस्वी तथा विद्वान गुरुजन । शारीरिक शक्ति के विकास के साथ ही आत्मिक उन्नति के विकास की सच्ची दिशा प्रदर्शित करने वाला आर्ष पाठविधि का सुप्रसिद्ध अध्ययन अध्यापन केन्द्र | सुविधापूर्ण विशाल गौशाला
विवेक तथा वैराग्य में निरत रह कर एकान्तिक तप साधना के अनन्तर, अन्तःकरण में अपने सामाजिक कर्तव्य के निर्वाह करने की सात्विक कामना जागृत होने पर पू. स्वामी श्री धर्मानन्द सरस्वती ने मई, 1984 में एक मास की समयावधि का तीन सो प्रतिभागियों वाला आर्यवीरदल के एक भव्य प्रशिक्षण शिविर का सफल आयोजन किया था। प्रशिक्षण शिविर के सकुशल समापन समारोह के अन्त में इस प्रशिक्षण कार्य को स्थायित्व देने का विचार पू. स्वामीजी के मन में उत्पन्न हुआ। इसे क्रियान्वित करने के लिये राजस्थान तथा गुजरात के आर्य सज्जनों का सहर्ष आर्थिक सहयोग स्वयंभू भावना से एकत्र होने लगा। और देखते ही देखते इस संकल्पित कार्य को सम्पन्न करने के संसाधन एकत्र कर इस गुरुकुल संस्था की स्थापना की गई। इस प्रकार पू. स्वामी श्री धर्मानन्द सरस्वती का उपर्युक्त शिवसंकल्प आर्ष गुरुकुल महाविद्यालय की स्थापना का बीज है ||
महर्षि दयानंद सरस्वती का मंतव्य है कि यदि संस्कृत का पठन-पाठन समाप्त हो गया तो संसार का बड़ा अनिष्ट हो जायेगा। महर्षि के इस वचन से प्रेरणा प्राप्त कर संस्कृत भाषा एवं संस्कृत विद्या के पठन-पाठन के लिए इस गुरुकुल की स्थापना की गई है। यहाँ पर देववाणी संस्कृत भाषा के माध्यम से वेद, ब्राह्मणग्रन्थ, दर्शन, उपनिषद्, निरुक्त तथा व्याकरण आदि सभी विषयों को महर्षि दयानन्द द्वारा निर्दिष्ट शैली से पढना पढाना हो रहा हैं । साथ ही प्राचीन आश्रम प्रणाली के अनुसार दिनचर्या का पालन करवाते हुए बलवान् सदाचारी, धर्मात्मा, देशभक्त विद्वान् तैयार किये जा रहे हैं
वैदिक धर्म व वैदिक साहित्य का जनता में प्रचार- प्रसार करना। गुरुकुल शिक्षा प्रणाली और आर्ष पाठ विधि को प्रचलित एवं प्रोत्साहित करना।
देववाणी संस्कृत भाषा के माध्यम से वेद, ब्राह्मणग्रन्थ, दर्शन, उपनिषद् ,निरुक्त तथा व्याकरण आदि सभी विषयों का महर्षि दयानन्द सरस्वती द्वारा निर्दिष्ट शैली से पढ़ना-पढ़ाना एवं प्राचीन आश्रम प्रणाली के अनुसार दिनचर्या का पालन करवाते हुए बलवान् , सदाचारी, धर्मात्मा, देशभक्त विद्वान् तैयार करना है।