CALL US: +91 9414589510
MAIL US : info@aarshgurukulabu.co.in
में अपने सामाजिक कर्त्तव्य के निर्वाह करने की सात्विक कामना जागृत होने पर पू. स्वामी श्री धर्मानन्द सरस्वती ने मई, 1984 में एक मास की समयावधि का तीन सौ प्रतिभागियों वाला आर्य वीर दल के एक भव्य प्रशिक्षण शिविर का सफल आयोजन किया था। प्रशिक्षण शिविर के सकुशल समापन समारोह के अन्त में इस प्रशिक्षण कार्य को स्थायित्व देने का विचार पू. स्वामीजी के मन में उत्पन्न हुआ। इसे क्रियान्वित करने के लिये राजस्थान तथा गुजरात के आर्य सज्जनों का सहर्ष आर्थिक सहयोग स्वयंभू भावना से एकत्र होने लगा। और देखते ही देखते इस संकल्पित कार्य को सम्पन्न करने के संसाधन एकत्र कर इस गुरुकुल संस्था की स्थापना की गई। इस प्रकार पू. स्वामी श्री धर्मानन्द सरस्वती का उपर्युक्त शिवसंकल्प आर्ष गुरुकुल महाविद्यालय की स्थापना का बीज है ||
आर्ष गुरुकुल महाविद्यालय, आबूपर्वत का शिलान्यास दिनांक ज्येष्ठ वदी पचमी, विक्रम संवत् 2043 तदनुसार 28 मई, 1986, बुधवार को आर्षपाठविधि के प्रसारक पू. स्वामी श्री ओमानन्दजी सरस्वती (गुरुकुल, झज्झर) के करकमलों द्वारा अनेक प्रान्तों आये हुए गणमान्य गृहस्थ, वानप्रस्थ तथा साधु-संन्यासियों की गरिमामयी उपस्थिति में सम्पन्न हुआ । गुरुकुल के भवन निर्माण आदि का आंशिक कार्य सम्पन्न हो जाने के अनन्तर दिनांक ज्येष्ठ सुदी तृतीया, विक्रम संवत् 2047 तदनुसार 27 मई 1990, रविवार को छात्रों के प्रवेश व उपनयन संस्कार के साथ गुरुकुल में पठन-पाठन विधिवत् रूप से प्रारंभ हुआ।
महर्षि दयानंद सरस्वती का मंतव्य है कि यदि संस्कृत का पठन-पाठन समाप्त हो गया तो संसार का बड़ा अनिष्ट हो जायेगा। महर्षि के इस वचन से प्रेरणा प्राप्त कर संस्कृत भाषा एवं संस्कृत विद्या के पठन-पाठन के लिए इस गुरुकुल की स्थापना की गई है। यहाँ पर देववाणी संस्कृत भाषा के माध्यम से वेद, ब्राह्मणग्रन्थ, दर्शन, उपनिषद्, निरुक्त तथा व्याकरण आदि सभी विषयों को महर्षि दयानन्द द्वारा निर्दिष्ट शैली से पढना पढाना हो रहा हैं । साथ ही प्राचीन आश्रम प्रणाली के अनुसार दिनचर्या का पालन करवाते हुए बलवान् सदाचारी, धर्मात्मा, देशभक्त विद्वान् तैयार किये जा रहे हैं
स्वामी धर्मानन्द सरस्वती, चन्दूलाल अग्रवाल, किशोर गोयल, पूनमचन्द्र नागर, सत्यनारायण जुईवाला, गजानन्द आर्य, धर्मपाल अग्रवाल, सुरेशचन्द्र अग्रवाल, गणेशम सोनी, वेदप्रकाश गुप्ता, रामेश्वर जसमतिया, मोहनलाल आर्य, जेठूराम सोलंकी, जयसिंह गहलोत, दीनदयाल गुप्ता, प्रभुभाई वेलाणी, विजयसिंह भाटी, तपेन्द्र वेदालंकार, कमलेशकुमार शास्त्री |